बुधवार, 12 फ़रवरी 2014

Poem on Save Girl Child in Hindi

माँ! मैं कुछ कहना चाहती हूँ
माँ! मैं भी जीना चाहती हूँ

तेरे आँगन की बगिया में
पायल की छमछम करती माँ!
चाहती मैं भी चलना

तेरी आँखों का तारा बन
चाहती झिलमिल करना
तेरी सखी सहेली बन माँ!
चाहती बाते करना

तेरे आँगन की बन तुलसी
मान तेरे घर का बन माँ!
चाहती मैं भी पढ़ना

हाथ बँटाकर काम में तेरे
चाहती हूँ कम करना
तेरे दिल के प्यार का गागर
चाहती मैं भी भरना

मिश्री से मीठे बोल बोलकर
चाहती मैं हूँ गाना
तेरे प्यार दुलार की छाया
चाहती मैं भी पाना

चहक-चहक कर चिड़ियाँ सी
चाहती मैं हूँ उड़ना
महक-महक कर फूलों सी
Rakesh Mishra

Kanya Bhrun Hatya Essay in Hindi

संसार का हर प्राणी जीना चाहता है और किसी भी प्राणी का जीवन लेने का अधिकार किसी को भी नहीं है. अन्य प्राणियों की तो छोड़ो आज तो बेटियों की जिंदगी कोख में ही छीनी जा रही है. "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" अर्थात जहाँ नारियों की पूजा की जाती है वहां देवता निवास करते हैं. ऐसा शास्त्रों में लिखा है किन्तु बेटियों की दिनोदिन कम होती संख्या हमारे दौहरे चरित्र को उजागर करती है. 

माँ के गर्भ में पल रही कन्या की जब हत्या की जाती है तब वह बचने के कितने जतन करती होगी यह माँ से बेहतर कोई नहीं जानता. गर्भ में 'माँ मुझे बचा लो ' की चीख कोई खयाली पुलाव नहीं है बल्कि एक दर्दनाक हकीकत है. अमेरिकी पोट्रेट फिल्म एजुकेशन प्रजेंटेशन ' The Silent Scream ' एक ऐसी फिल्म है जिसमे गर्भपात की कहानी को दर्शाया गया है. इसमें दिखाया गया है कि किस तरह गर्भपात के दौरान भ्रूण स्वयं के बचाव का प्रयास करता है. गर्भ में हो रही ये भागदौड़ माँ महसूस भी करती है. अजन्मा बच्चा हमारी तरह ही सामान्य इंसान है. ऐसे मैं भ्रूण की हत्या एक महापाप है. 

वह नन्हा जीव जिसकी हत्या की जा रही है उनमे से कोई कल्पना चावला, कोई पी. टी. उषा, कोई स्वर कोकिला लता मंगेशकर तो कोई मदर टेरेसा भी हो सकती थी. कल्पना चावला जब अन्तरिक्ष में गयी थी तब हर भारतीय को कितना गर्व हुआ था क्योंकि हमारे भारत को समूचे विश्व में एक नयी पहचान मिली थी. सोचो अगर कल्पना चावला के माता पिता ने भी गर्भ में ही उसकी हत्या करवा दी होती तो क्या देश को ये मुकाम हासिल करने को मिलता ? 

जीवन की हर समस्या के लिए देवी की आराधना करने वाला भारतीय समाज कन्या जन्म को अभिशाप मानता है और इस संकीर्ण मानसिकता की उपज हुयी है दहेज़ रुपी दानव से. लेकिन दहेज़ के डर से हत्या जैसा घ्रणित और निकृष्ट कार्य कहाँ तक उचित है ? अगर कुछ उचित है तो वह है दहेज़ रुपी दानव का जड़मूल से खात्मा. एक दानव के डर से दूसरा दानविक कार्य करना एक जघन्य अपराध है और पाशविकता की पराकाष्ठा है. 

हिंसा का यह नया रूप हमारी संस्कृति और हमारे संस्कारों का उपहास है. नारी बिना सृष्टि संभव नहीं है. ऐसे में बढ़ते लिंगानुपात की वजह से वह दिन दूर नहीं जब 100 लड़कों पर एक लड़की होगी और वंश बेल को तरसती आँखे कभी भी तृप्त नहीं हो पायेगी. 

Rakesh Mishra

गुरुवार, 30 जनवरी 2014

पांच साल की उम्र थी, उसे पता नहीं था कि उसके साथ क्या हो रहा है पर इसमें उसकी कोई गलती नहीं थी बल्कि गलती उस हैवान की थी जो यह सब कुछ कर रहा था. जब नगमा (बदला हुआ नाम) सात साल की थी वो भी अपनी उम्र की बाकी बच्चियों की तरह चंचल और चुलबुली थी पर अचानक ही वो बड़ी गंभीर और चुप-चुप सी रहने लगी. चुलबुली बच्ची अचानक चुप हो जाए तो मां को एक डर सताने लगता है कि आखिरकार उनकी मासूम सी बच्ची डरी-डरी क्यों नजर आ रही है. अब आप सोच रहे होंगे कि उस मासूम के साथ ऐसा क्या हुआ होगा जो उसके चेहरे की मुस्कान गायब हो गई.
नगमा की मां सिंगल मदर हैं. वह पेशे से टीचर हैं और अपने माता-पिता के घर रहती थीं. वह काम पर चली जातीं और उन्हें कुछ पता नहीं होता कि छोटी बच्ची नगमा को उनकी गैर-मौजूदगी में क्या कुछ झेलना पड़ता था. नगमा की मां ने बताया कि पहले नगमा काफी बात करती थी. बाद में उन्होंने गौर किया कि वह चुप-चुप सी रहने लगी है. उससे वजह पूछी तो उसने कुछ नहीं बताया. बस वह उस घर से निकलना चाहती थी. अपने नाना-नानी के साथ रहना उसे अच्छा नहीं लगता था. नगमा की मां को शुरुआत में कुछ समझ में नहीं आया पर धीरे-धीरे उन्होंने नगमा को विश्वास में लिया, उसे भरोसा दिलाया, तब नगमा ने अपनी मां को बताया, ‘नानाजी मुझे नीचे (प्राइवेट पार्ट में) टच करते हैं. इस वाक्य को सुनने के बाद शायद अधिकांश महिलाओं का अपने रिश्तों पर से विश्वास उठ जाएगा और यह जानकर तो हैरानी होगी कि नगमा का यौन शोषण उसके नाना तब से कर रहे थे जब वो पांच साल की थी.
girl life
एक ऐसी मां जिसके पति से उसका तलाक हो चुका था और अपनी सात साल की बच्ची की मुस्कान ही उस मां के जीने का अंतिम सहारा थी पर उसे क्या पता था कि उसी के अपने उसकी बच्ची की मुस्कान छीन लेंगे. नगमा की मां  के लिए यह सदमे जैसा था. मगर, अभी इससे बड़े झटके लगने बाकी थी. नगमा की मां ने जब घर में यह मसला उठाया तो उन्हें पता चला कि उनकी मां को भी यह बात मालूम थी, पर फिर भी वो चुप थीं. यहां तक कि उनके भाइयों ने भी उनका साथ देने से इनकार कर दिया क्योंकि घर की इज्जत का सवाल था और पुलिस वालों ने इसलिए साथ नहीं दिया क्योंकि नगमा की मां पूरे परिवार के खिलाफ कार्यवाही चाहती थी.
इज्जत के लिए नीलाम 
नगमा की मां केवल अकेली ही नहीं हैं जिनको इज्जत के नाम पर चुप रहने के लिए बोला गया है. जब हमारे समाज में बलात्कार होते हैं तो पीड़ित नारी को चुप रहने के लिए बोला जाता है भले ही बलात्कारी मर्द सीना चौड़ा करके पूरे समाज में भ्रमण करता रहे. जब एक नारी पर उसका पति अत्याचार करता है तो उसके अपने ही माता-पिता उसे चुप रहने के लिए बोलते हैं क्योंकि घर की इज्जत का सवाल होता है. मर्दवादी समाज की यह बात समझ से परे है कि केवल नारी ही घर की इज्जत होती है. क्यों नारी को बार-बार इज्जत के नाम पर नीलाम किया जाता है. कोई जाकर पूछे उस समाज से कि उस पांच साल की बच्ची के साथ जो उसके नाना ने यौन शोषण जैसा अपराध किया क्या उससे उस घर की इज्जत नीलाम नहीं हुई? पर यदि नगमा की मां अपनी बेटी के साथ हुए अत्याचार की लड़ाई लड़ेगी तो घर की इज्जत नीलाम हो जाएगी.

 भरोसा नहीं मुझे इस मर्दवादी समाज पर,
अपने हिस्से की लड़ाई मैं खुद लड़ना जानती हूं
मुझे क्या रोकेगा यह समाज,
मैं वक्त से आगे निकलना जानती हूं.

बुधवार, 29 जनवरी 2014

बिन बेटी ये मन बेकल है, बेटी है तो ही कल है,
बेटी से संसार सुनहरा, बिन बेटी क्या पाओगे?

बेटी नयनों की ज्योति है, सपनों की अंतरज्योति है,
शक्तिस्वरूपा बिन किस देहरी-द्वारे दीप जलाओगे?

शांति-क्रांति-समृद्धि-वृद्धि-श्री सिद्धि सभी कुछ है उनसे,
उनसे नजर चुराओगे तो किसका मान बढ़ाओगे?

सहगल-रफ़ी-किशोर-मुकेश और मन्ना दा के दीवानों!
बेटी नहीं बचाओगे तो लता कहां से लाओगे?

सारे खान, जॉन, बच्चन द्वय रजनीकांत, ऋतिक, रनबीर
रानी, सोनाक्षी, विद्या, ऐश्वर्या कहां से लाओगे?

अब भी जागो, सुर में रागो, भारत मां की संतानों!
बिन बेटी के, बेटे वालों, किससे ब्याह रचाओगे?

बहन न होगी, तिलक न होगा, किसके वीर कहलाओगे?
सिर आंचल की छांह न होगी, मां का दूध लजाओगे।